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Hasdev के लुटेरे अब भी सलाखों के पीछे, अंबानी-अड़ानी से ये रिश्ता क्या कहलाता है…

रायपुर. Hasdev के लुटेरे अब भी सलाखों के पीछे खुलेआम घुम रहे हैं। ऐसा कोई नहीं जो इस लुटेरे के खिलाफ आवाज उठा सके। जो कोई आवाज उठाता है। वह खुद सलाखों के पीछे चला जाता है। परसा ईस्ट केते खुली खदान आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। कोई आंसू पोछना वाला नहीं है।

किसी ने क्या खूब कहा है शईय्या भये कोतवाल तो डर काहे का। कोतवाल ही लुटेरों के साथ जा मिला हो तो चोरों को जेल में डालने की बात भूल जायें। हसदेव को उजाड़ने के लिए जिस बेतरतीब से आरा मशीनों का उपयोग किया गया है। वह किसी से छिपा नहीं है।

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Hasdev : किस तरह ग्रामीणों को जेलों में ठूसा गया ये किसी को बताने की जरुरत नहीं है। रात के अंधेरे में ग्रामीणों को अधूरे कपड़े में नजर बंद किया गया। ये कौन से कानून के तहत किया गया। ये सब लोग समझते हैं। पर आंखे मूंदे बैठे हैं। जनता ये भी समझती है। हसदेव के लुटेरों से ‘ये रिश्ता कहलाता है’। पुलिसिया डंडा का दर्द अब भी आक्रोशित अरण्य नहीं भूल पायी है।

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Hasdev : किस तरह 21 दिसंबर की सुबह घाटबर्रा के पेंड्रा मार के जंगलों में पेड़ों की कटाई शरू की गई। पूरे गांव को छावनी में तब्दील कर दी गई थी। ग्रामीण डर के साये में जीने को मजबूर हो गये थे। अरण्य को काटकर किसका भला होने वाला है। ये किसी से छिपा नहीं है। खबर आ रही है आने वाले दिनों में कोयले के इस भूखे शेर के लिए अरण्य के लाखों पेड़ काटे जाएंगे। 50 हजार पेड़ों के कटने पर मात्र दो-चार दिन की शोरगुल के बाद लोग अरण्य के दर्द को भूल गये।

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